-सीमा कुमारी
हर साल मार्गशीर्ष महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन ‘काल भैरव’ की जयंती (Kaal Bhairav Jayanti) मनाई जाती है। इस वर्ष यह जयंती 16 नवंबर, बुधवार को मनाई जाएगी।
मान्यता है कि इस दिन भगवान काल भैरव का अवतरण हुआ था। शास्त्रों के मुताबिक, काल भैरव अत्यंत दयालु और अपने भक्तों से जल्दी प्रसन्न होने वाले देवताओं में से एक हैं। इन्हें प्रसन्न करना भगवान शिव को प्रसन्न करने जितना ही आसान है। उन्हें प्रसन्न करने के लिए काल भैरव जयंती को उत्तम दिन माना जाता है। इस दिन विधिवत पूजा-पाठ करने से भक्तों के जीवन में खुशहाली आती है। आइए जानें कब है काल भैरव जयंती, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि।
शुभ मुहूर्त
मार्गशीर्ष अष्टमी तिथि आरंभ:
16 नवंबर 2022, सुबह 05 बजकर 49 मिनट से
अष्टमी तिथि समाप्त:
- 17 नवंबर 2022, सुबह 07 बजकर 57 मिनट तक
- उदया तिथि के अनुसार ‘काल भैरव जयंती’ 2022:
- 16 नवंबर 2022
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पूजा विधि
शास्त्रों के अनुसार, ‘काल भैरव’ जयंती के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में स्नान-ध्यान करें और इसके बाद व्रत का संकल्प लें। भगवान काल भैरव की पूजा रात्रि के समय की जाती है। इसलिए इस दिन संध्या काल में पूजा से पहले मंदिर की साफ-सफाई करें और उनकी प्रतिमा के सामने चौमुखी दीप प्रज्वलित करें। इसके बाद उन्हें गंध, पुष्प, धूप, दीप अर्पित करें और इन सबके साथ इमरती, जलेबी, उड़द, पान, नारियल आदि का भी भोग चढाएं। फिर काल भैरव चालीसा का पाठ करें और अंत में आरती जरूर करें।
धार्मिक महत्व
ऐसी मान्यता है कि जब माता सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ के हवन कुंड में आत्मदाह कर लिया, उस वक्त भगवान शंकर को अत्यधिक क्रोध आया और वे अपने ससुर राजा दक्ष को दंड देने के लिए अपने अंशावतार काल भैरव को प्रकट किया।
‘काल भैरव’ ने सती के आत्मदाह के लिए उन्हें दंडित किया। जिस दिन काल भैरव की उत्पत्ति हुई वह तिथि मार्गशीष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि थी। इसलिए हर साल इस दिन काल भैरव की जयंती मनाई जाती है। ऐसी मान्यता है कि जो लोग इस दिन बाबा काल भैरव की विधि विधान से पूजा करते हैं। उनके ऊपर से सभी प्रकार की नकारात्मक शक्तियां दूर हो जाती है। साथ ही रोग, दोष, भय, अकाल मृत्यु इत्यादि का दोष दूर हो जाता है।
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