किससे मिली थी डिंपल को हार
भारतीय जनता पार्टी के नेता सुब्रत राय को साल 2014 में कन्नौज से टिकट दिया गया था। सपा के सबसे मजबूत गढ़ माने जाने वाले कन्नौज में उनके सामने मुलायम परिवार की बहू डिंपल यादव थीं। फिर भी पाठक ने पूरा जोर लगाकर चुनाव लड़ा। वह चुनाव तो नहीं जीत पाए लेकिन सपा के इस किले को उन्होंने एक मजबूत धक्का दे दिया था। कांटे के मुकाबले में डिंपल यादव महज 19 हजार 907 वोटों के अंतर से चुनाव जीत पाई थीं।
साल 2019 में मिली करारी हार
सपा ने इस झटके के बावजूद साल 2019 के चुनाव में डिंपल को कन्नौज से चुनावी मैदान में उतार दिया। इस चुनाव में बीजेपी के सुब्रत पाठक ने कमाल कर दिया। उन्होंने साल 1998 से कन्नौज के चुनावी ताल में सूखा कमल फिर से खिला दिया। साल 1999 से लेकर 2014 तक हर चुनाव में सपा यहां से विजयी होती रही थी। अखिलेश यादव खुद इसी सीट से सांसद चुने जाते रहे। उन्होंने यहां से जीत की हैटट्रिक भी लगाई लेकिन साल 2019 में सुब्रत पाठक ने इतिहास बदल दिया। उन्होंने सपा की प्रत्याशी ही नहीं, पार्टी के सबसे प्रभावशाली नेता की पत्नी को चुनाव में 12 हजार मतों के अंतर से मात दे दी।
सुब्रत पाठक ने उसी डिंपल यादव को चुनाव में हरा दिया, जिनसे एक चुनाव पहले वह हार चुके थे। कन्नौज चुनाव के नतीजे बीजेपी के लिए सबसे बड़ा हौसला और सपा के लिए बड़ा सबक साबित हो सकते हैं। बीजेपी ने इसके अलावा रामपुर और आजमगढ़ जैसे सपा के गढ़ों को हाल ही में ध्वस्त किया है। ऐसे में अगर उसे मैनपुरी में कोई उम्मीद दिखती है, तो वह पूरी तरह से हवा-हवाई भी नहीं है।
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