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केंद्र के 2016 के नोटबंदी के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक बैच के जवाब में दायर एक हलफनामे में प्रस्तुतियां दी गई थीं। निर्दिष्ट बैंक नोटों के कानूनी निविदा चरित्र को वापस लेना अपने आप में एक प्रभावी उपाय था और नकली नोट, आतंकवाद के वित्तपोषण, काले धन और कर चोरी के खतरे से निपटने के लिए एक बड़ी रणनीति का हिस्सा भी था।
सुप्रीम कोर्ट में मोदी सरकार ने 2016 में लिए अपने नोटबंदी के फैसले का बचाव किया है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि 2016 की नोटबंदी एक “सुविचारित” फैसला था और ये आतंकके वित्तपोषण, काले धन और कर चोरी के खतरे से निपटने के लिए एक बड़ी रणनीति का हिस्सा था। केंद्र ने 500 रुपये और 1,000 रुपये के मूल्यवर्ग के नोटों को विमुद्रीकृत करने के अपने फैसले का बचाव करते हुए शीर्ष अदालत को बताया कि यह कदम भारतीय रिजर्व बैंक के साथ व्यापक परामर्श के बाद उठाया गया था और नोटबंदी लागू करने से पहले बड़े स्तर पर तैयारी की गई थी। सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर सरकार ने कहा है कि फरवरी, 2016 में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के साथ केंद्र ने नोटबंदी की प्लानिंग की थी।
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केंद्र के 2016 के नोटबंदी के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक बैच के जवाब में दायर एक हलफनामे में प्रस्तुतियां दी गई थीं। निर्दिष्ट बैंक नोटों के कानूनी निविदा चरित्र को वापस लेना अपने आप में एक प्रभावी उपाय था और नकली नोट, आतंकवाद के वित्तपोषण, काले धन और कर चोरी के खतरे से निपटने के लिए एक बड़ी रणनीति का हिस्सा भी था, लेकिन यह केवल उन्हीं तक सीमित नहीं था। सरकार ने कोर्ट में कहा कि यह संसद के एक अधिनियम (RBI अधिनियम, 1934) द्वारा प्रदत्त शक्तियों के अनुसार उक्त अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप प्रयोग किया गया एक आर्थिक नीति निर्णय था।
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बता दें कि 12 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने 500 और 1,000 रुपये के नोटों को बंद करने के केंद्र सरकार के 2016 के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए नोटिस जारी किया था। शीर्ष अदालत ने केंद्र और भारतीय रिजर्व बैंक से विस्तृत हलफनामा दाखिल करने को कहा था। संविधान पीठ में जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर, बीआर गवई, एएस बोपन्ना, वी रामसुब्रमण्यम और बीवी नागरत्ना शामिल हैं।
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