-सीमा कुमारी
दंड और न्याय के देवता ‘शनिदेव’ (Shani Dev) को समर्पित शनिवार का दिन हिन्दू श्रद्धालुओं के लिए विशेष महत्व रखता है। शनिदेव को न्याय का देवता माना जाता है। इनकी क्रूर दृष्टि से सिर्फ इंसान ही नहीं, बल्कि देवता भी डरते है। लोगों के अच्छे-बुरे कर्मों का हिसाब शनिदेव ही रखते हैं।
शनिवार के दिन शनिदेव के मंदिरों में उन्हें सरसों का तेल अर्पित किया जाता है, जिसके कारण उनकी मूर्ति तेल में डूब जाती है। इस दौरान लोग सरसों के तेल का ही दीपक भी जलाते है। ऐसे में आपके दिमाग में भी ये सवाल तो आता ही होगा कि शनिदेव को आखिर सरसों का तेल इतना पसंद क्यों है? दरअसल इससे जुड़ी पौराणिक कथा है, आइए जानिए इस कथा के बारे में –
पौराणिक कथा
रामायण काल के दौरान शनि देव को अपने बल और पराक्रम पर घमंड हो गया था। उस समय हनुमान जी के भी पराक्रम की कीर्ति चारों दिशाओं में फैली हुई थी। जब शनिदेव को हनुमान जी के बल का पता चला, तो वे भगवान हनुमान से युद्ध करने के लिए निकल पड़े। जब शनि हनुमान जी के पास पहुंचे तो देखा कि भगवान हनुमान तो एक शांत स्थान पर अपने स्वामी श्री राम की भक्ति में लीन बैठे है।
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ये देख शनिदेव ने उन्हें युद्ध के लिए ललकारा। जब हनुमान जी ने शनिदेव की युद्ध की ललकार सुनी, तो उन्होंने शनि को समझाकर युद्ध न करने के लिए कहा। लेकिन वे युद्ध पर अड़ गए। इसके बाद हनुमान जी शनिदेव के साथ युद्ध के लिए तैयार हो गए और दोनों के बीच घमासान युद्ध हुआ।
इस युद्ध में शनिदेव भगवान हनुमान से बुरी तरह हार गए। हनुमान जी के प्रहारों से उनके पूरे शरीर में चोटें आ गईं और वे दर्द से परेशान हो गए। इसके बाद हनुमान जी ने उनके शरीर पर सरसों का तेल लगाया, जिससे उनकी परेशानी दूर हुई। इसके बाद शनिदेव ने कहा कि आज के बाद जो भी मुझे सच्चे मन से सरसों का तेल चढ़ाएगा, उसको शनि संबन्धी तमाम कष्टों से मुक्ति मिलेगी। तब से शनिदेव को सरसों का तेल चढ़ाने की परंपरा शुरू हो गई।
माना जाता है कि शनिवार के दिन जो भक्त शनिदेव को सरसों का तेल चढ़ाते हैं, उन पर शनिदेव विशेष कृपा बरसाते हैं। उन लोगों के शारीरिक, मानसिक और आर्थिक समस्याएं दूर होती हैं। शनि ढैय्या, साढ़ेसाती और शनि महादशा का प्रभाव कम हो जाता है।
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