जितने प्रदेश उतनी परंपरा. हर प्रांत की अलग बोली अलग भाषा यहाँ तक कि अलग अलग होता है खाना भी. यही हमारे हिंदुस्तान की पहचान और खासियत भी है. हर खाने का अपना अलग जायका और खासियत होती है लेकिन क्या कभी खाने के पीछे का इतिहास पढ़ा है आपने. आज हम पंजाब के पसंदीदा खाने का इतिहास और वजह जानेंगे.
सरसों का साग और मक्के की रोटी पंजाब का फेवरेट फूड है हर पंजाबी इस खाने को बड़े चाव से खाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि जीस मक्के दी रोटी का पूरा पंजाब दीवाना है उसका इतिहास कितना पुराना है असल में ये डिश भारत की है ही नहीं बल्कि कहीं और ही है इसकी जननी.
सरसों दा साग और मक्के की रोटी है पंजाब की पहचान
पंजाबी जितने मस्तमौला होते हैं. उतने ही खान पान को लेकर संजीदा भी होते हैं.तगड़ा खानपान तो होता है, लेकिन उतने ही ताकत और मेहनतकश भी होते हैं वो लोग. आमतौर पंजाबियों को लेकर धारणा है कि उन्हें मांसाहार बेहद पसंद होता है. लेकिन असल में हर पंजाबी को असली जायका सरसों का साग और मक्के दी रोटी में मिलता है. जिसे पंजाब की पहचान कहा जाता है. लेकिन क्या आपको पता है कि पंजाब की पहचान कहे जाने वाले मक्के दी रोटी का इतिहास भारत नहीं बल्कि यूरोप से जुड़ा हुआ है. मक्के दी रोटी की शुरुआत पंजाबियों ने नहीं की थी. बल्कि इसके पीछे भारत पाक बंटवारे का अहम रोल है.

सरसों दा साग और मक्के की रोटी है पंजाब की पहचान, दिल लूट लेता है इसका ज़ायका
16वीं शताब्दी में यूरोप से भारत आया था ‘मक्का’
मक्का भारत में नहीं उगता था. बल्कि सोलहवीं शताब्दी में इसे यूरोप से भारत लाया गया था यह भारत में नहीं बल्कि मेक्सिको और साउथ अफ्रीका में उगाया जाता था मक्के की रोटी बेहद फायदेमंद होती है. जानकारों के मुताबिक भारत पाकिस्तान के बंटवारे के दौरान प्रवासियों ने सड़कों पर पनाह ली थी. इसी दौरान वह सरसों का साग और मक्के की रोटी या खाते थे. धीरे धीरे यह पसंद बन गई. और पेट पालने के लिए उन लोगों ने मक्के दी रोटी और सरसों का साग दूसरों के लिए भी बनाना और खिलाना शुरू कर दिया था. धीरे धीरे जैसे पंजाबियों ने दुनिया भर में अपनी जगह बनाई, उन्हीं के साथ सरसों के साथ और मक्के की रोटी ने भी दुनिया भर में अपनी पहचान बना ली.
फिलहाल पंजाबी संस्कृति का हिस्सा मानी जाने वाली मक्के की रोटी और सरसों का साग का इतिहास करीब 2500 साल पुराना बताया जाता है. इसका जिक्र जैन ग्रंथ के अचारांग सूत्र में भी मिला है. सुश्रुत संहिता में भी इसका जिक्र किया गया है. तब इसे पकाने के लिए सरसों के बीज और तेल का इस्तेमाल होता था और पक जाने के बाद खाने के लिए इसमें देशी घी ऊपर से डालकर परोसा जाता था. जो इस के जायकों को और बढ़ा देता था. अब भी इसे खाने वाले लोग खूब मक्खन डालकर इसका स्वाद बढ़ाते हैं.
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FIRST PUBLISHED : December 17, 2022, 07:42 IST
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