क्या है पूरा मामला
मंगलवार को जैसे ही सदन की कार्यवाही शुरू हुई और उपसभापति नीलम गोर्हे ने जैसे ही प्रश्नोत्तर काल पुकारा, नेता प्रतिपक्ष दानवे ने कहा, ‘नागपुर सुधार न्यास ने झुग्गियों में रहने वालों के पुनर्वास के लिए साढ़े चार एकड़ भूखंड आरक्षित किया था। हालांकि, पूर्व शहरी विकास मंत्री एकनाथ शिंदे (अब मुख्यमंत्री) ने इस भूखंड के टुकड़ों को 16 निजी व्यक्तियों को डेढ़ करोड़ रुपये में आवंटित कर दिया था, जबकि भूमि का मौजूदा मूल्य 83 करोड़ रुपये है।’ दानवे ने कहा, ‘यह बेहद गंभीर मामला है। मुंबई हाई कोर्ट की नागपुर पीठ ने भूमि सौंपने पर पहले ही रोक लगा दी थी और मामला अब भी चल रहा है।
उसके बावजूद शहरी विकास मंत्री (महाविकास अघाड़ी सरकार में) के तौर पर शिंदे ने जमीन सौंपने का निर्णय लिया, जो अदालत के कार्य में गंभीर हस्तक्षेप है।’ बता दें कि इस मामले में जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान नागपुर खंडपीठ ने रिटायर्ड न्यायमूर्ति एम.एल.गिलानी की अध्यक्षता में एक समिति गठित की। समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि यह मामला कोर्ट में है, इसलिए ऐसी किसी भी आरक्षित जमीन को नियमित करने की कार्रवाई न की जाए।
कार्यवाही हुई स्थगित
मुख्यमंत्री पर इतने गंभीर आरोप लगने के बाद सदन में शोर मच गया। सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच नियमों को लेकर तीखी बहस हुई। दो बार स्थगन के बाद जब कार्यवाही फिर शुरू हुई, तो फडणवीस ने कहा कि इस मुद्दे को अभी सदन में नहीं उठाना चाहिए था, क्योंकि अदालत ने इस पर कोई फैसला अभी तक नहीं सुनाया है। उनकी इस टिप्पणी पर विपक्ष के हंगामे के चलते सदन की कार्यवाही दिनभर के लिए स्थगित करनी पड़ी।
विपक्ष ने मांगा शिंदे का इस्तीफा
उद्धव ठाकरे, नाना पटोले, जयंत पाटील, अजीत पवार और अंबादास दानवे जैसे विपक्ष के शीर्ष नेताओं ने इस मामले में शिंदे से मुख्यमंत्री पद छोड़ने की मांग की। पटोले ने कहा कि एकनाथ शिंदे को एक मिनट के लिए भी मुख्यमंत्री पद पर बने रहने का कोई अधिकार नहीं है और उन्हें तुरंत पद छोड़ देना चाहिए। जब इतना बड़ा जमीन घोटाला है, तो वह पद पर कैसे रह सकते हैं? एमवीए सरकार के दौरान अनिल देशमुख और संजय राठौड़ जैसे तत्कालीन मंत्रियों ने तो आरोप लगते ही इस्तीफा दे दिया था।
शिंदे ने दिया जबाब
मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने अपने ऊपर लगे आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि शहरी विकास मंत्री के तौर पर मैंने कोई गलत काम नहीं किया है। 2009 में सरकारी दरों के अनुसार राशि वसूल की गई है। मुख्यमंत्री शिंदे ने यह भी स्पष्ट किया कि यह जमीन किसी बिल्डर को नहीं दी गई। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने विपक्ष के आरोपों का जबाब देते हुए कहा कि 2007 में 49 लेआउट स्वीकृत किए गए थे। 2015 में उस समय 34 प्लॉट स्वीकृत किए गए थे। उस समय एनआईटी के प्रमुख ने रेडी रेकनर की दर से भुगतान करने को कहा। जबकि एक अन्य को गुंठेवारी के हिसाब से भुगतान करने को कहा। मुख्यमंत्री ने कहा कि मेरे पास मामला अपील के लिए आया था, क्योंकि उस समय अलग-अलग दरों का जिक्र था।
उन्होंने कहा कि तत्कालीन एनआईटी प्रमुख को सरकार के उस समय के निर्णय और प्रावधानों के अनुसार निर्णय लेने का निर्देश दिया गया था। शिंदे ने कहा कि 2021 में मैंने यह आदेश पारित किया है कि इसके आगे इस मामले में कोर्ट जो आदेश पारित करेगा उसी के अनुसार कार्रवाई की जाए।
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