नागौर. भाई – बहन के लिए आज के समय में बहन को मंहगे गिफ्ट या कोई अनमोल तोपहा देते हैं.लेकिन प्राचीन समय में ऐसा कोई सिस्टम नही था. लेकिन उस समय में एक भाई ने बहन की पानी की समस्या को दूर करने के लिए गांव के अंदर तालाब खोद दिया.जिससे आज के वर्तमान समय में लोग पानी का उपयोग कर रहे हैं. जो गांव वालों के लिए वरदान साबित हो रहा हैं.
क्या है इतिहास
तालाब काग्रामीण भवरलाल जी जाट व ग्रामीणों ने बताया कि प्राचीन समय में बिणजारा जाति के लोग पहले व्यापार का काम करते थें. इसी दौरान यहां पर लाखाराम बिणजारा भी यहां मूडवा मे व्यापार करने तब यहां पर अपनी धर्म की बहन बनायी हुई उसके लिए 1150 वर्ष पूर्व यहां पर तालाब खोदा. इस तालाब रो ग्रामवासी भाई बहन के प्यार का प्रतीक मानते हैं. उसके बाद इस तालाब को लाखोलाव तालाब के नाम से जाना जाता हैं.
यहां पर पुष्कर के 52 घाट जैसे तालाब के बाहर 52 मंदिर
वहां के स्थानीय निवासी मास्टर प्रहलाद भाकल ने बताया कि जैसे पुष्कर सरोवर के चारो तरफ 52 घाट विद्यमान हैं उसी तरह इस तालाब के चारों तरफ 52 मंदिर बने हुऐ हैं. क्योंकि इस गांव के लोगों की भगवान के प्रति गहरी आस्था जुङी हुई हैं. पहले किसी भी संकट या बीमारी से बचने के लिए भगवान के यहां पर माथा टकते थे और गांव के हर समस्या से बचाने के लिए मंदिरो मे जाते थे इसलिए इस तालाब के बाहर 52 मंदिरो का निर्माण करवाया गया.
यह तालाब बना किसानों के वर्षामापी यंंत्र
आज के भौतिक दौर या आधुनिक युग में विज्ञान का बोलबाला हैं लेकिन प्राचीन समय में विज्ञान का ज्ञान लोगों को नही था. उसी दौरान वर्षामापी यंत्र भी नही थें. ग्रामीणों ने बताया कि पहले लोग इस तालाब में बनाये हुऐ चिन्हों की मदद से कितनी वर्षा हुईं इसका पता इसी तालाब से लगाते थें. इसी कारण उस समय का इसे वर्षा मापी तालाब भी कहते थें. आज भा गांव के बुजुर्ग लोग इसी तालाब में बने चिन्हों को देखकर बर्षा का पता लगाते हैं.
वर्तमान में 5 से अधिक गांव के लोग पीते है पानी
भंवरलालजी जाट ने बताया कि नागौर के आस पास बने हुऐ गांवों मे यह सबसे बङा तालाब हैं. आज के दौर मे भी लोग इस तालाब का पानी पीते हैं.जब जरूरत पङनें पर मारवाङ मूडवा के आस पास के गांव के लोग इस तालाब का पानी ले जाते हैं.
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FIRST PUBLISHED : December 21, 2022, 14:01 IST
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